इस प्रकार पंडित विष्णु शर्मा ने पहले तंत्र मित्रभेद (Loss of Friends) का अध्यापन प्रारंभ किया | मित्रभेद में करटक एवं दमनक नाम के दो गीदड़ों के मध्य संवाद के रूप में विभिन्न कथाओं का वर्णन है |
मित्रभेद (Loss of Friends) -
बहुत समय पूर्व की बात है दक्षिण भारत के संपन्न नगर में वर्धमान नाम का एक व्यापारी निवास करता था | एक रात जब वर्धमान रात्रि में विश्राम कर रहा था तो उसने मन में विचार किया की उसे और अधिक धनोपार्जन के लिए प्रयास करना चाहिए | उसने सोचा की यदि वह अपने माल को अन्य नगरों में ले जाकर बेचे तो उसे अच्छी खासी रकम मिल सकती है |
इस प्रकार विचार करके एक दिन उसने मथुरा नगर जाकर व्यापार करने का निश्चय किया |व्यापार के लिए उपयोगी माल लेकर, गुरुजनों की आज्ञा लेकर तथा अच्छे रथ पर चढकर वह बाहरनिकला | उसने अपने घर में ही पैदा हुए माल ढोने वाले - संजीवक और नंदकनाम के शुभ लक्षण वालें दो बैलों को उसने अपने रथ में जोत दिया था |
कुछ दिनों की यात्रा के पश्चात वर्धमान का कारवाँ यमुना नदी के किनारे जा पहुंचा | उसके रथ में जुते संजीवक नाम के वैल का पैर यमुना के किनारे उतरते हुए कीचड़ में फँसकर टूट गया, और जोत टूट जाने पर वह जमीन पर बैठ गया | उसकी यह अवस्था देखकर वर्धमान को वड़ा दुख हुआ | स्नेह से द्रवित होकर वह उसके लिए तीन दिनों तक अपनी यात्रा रोके रहा |
तभी उसे दुखी देखकर उसके साथियों ने कहा, "अरे सेठ, क्यों तुम इस वैल के कारण सिंह और बाघ से भरे इस वन में अपने सारे कारवां को जोखिम में डालते हो ? कहा भी है-
“”बुद्धिमान पुरुष छोटी चीजों के लिए वडी वस्तुओं का नाश नहीं करते,
छोटी वस्तु छोड़कर वडी वस्तु का रक्षण करना ही पांडित्य है” |”
इस पर उनकी बात मानकर संजीवक के लिए कुछ रखवाले नियुक्त कर अपने बाकी साथियों के साथ वर्धमान आगे चल निकला । उधर उन रखवालो ने वन को अनेक खतरों से भरा जानकर संजीवक को वन में ही छोड़ दिया और पीछे से दूसरे दिन वर्धमान के पास जाकर उससे झूठ ही कहा, "हे स्वामी संजीवक मर गया । हमने उसका अग्नि-संसकार दिया । वर्धमान यह बात सुनकर दुखी मन से कारवाँ समेत आगे बढ़ गया|
इधर यमुना के जल से सिंचित शीतल हवा से स्वस्थ-शरीर होकर, संजीवक- अपने बाकी आयुष्य के कारण किसी तरह उठकर यमुना तट के ऊपर पहुँचा | वहाँ नरम दूब (घास) को चरता हुआ वह थोडे ही दिनों में महादेव के नंदी जैसा पुष्ट, बड़े डील वाला और बलवान हो गया | वह हर रोज अपने सींगों से बांबी खोदता, तथा गर्जना करते हुए वन में विचरने लगा । ठीक ही कहा है.-……….
“अरक्षित व्यक्ति भी भाग्य से रक्षित होने परे रक्षा पाता हैं
अंतर सुरक्षित व्यक्ति भी भाग्यहीन होने से नष्ट हो जाता है |”
“वन में छोड़ दिये जाने पर भी अनाथ व्यक्ति जीता है घर में प्रयत्न करने पर भी मनुष्य नाश पाता है |"
उस वन का राजा पिंगलक नाम का एक सिंह था | एक दिन प्यास से व्याकुल हो कर पिंगलक यमुना नदी के तट पर पानी पीने गया और उसने दूर से ही संजीवक की गर्जना सुनी | पिंगलक ने मन में विचार किया की हो ना हो इस वन में कोई उससे भी शक्तिशाली जीव आ गया है |
इस प्रकार भयभीत होकर पिंगलक प्यासा ही वापस लौट गया और वन में बरगद के वृक्ष के नीचे अपने सभी अनुयायियों, सलाहकारों और नौकरों की सभा बुलाई | उसी वन मे करटक और दमनक नाम के दो अधिकार भ्रष्ट मंत्री पुत्र गीदड निवास करते थे | उन्होंने दूर से ही पिंगलक को प्यासा लौटकर और फिर बरगद के वृक्ष के नीचे सभा बुलाते हुए देखा तो आपस में मंत्रणा करने लगे -
दमनक बोला "भद्र करटक, यह अपना स्वामी पिंगलक पानी पीने कै लिए यमुना के किनारे पर गया पर फिर वापस आकर खडा है | प्यास से व्याकुल होते हुए वह किस कारण से पीछे फिरकर व्यूह-रचना करके उदासचित्त होकर इस वट-वृक्ष के नीचे आ गया है ? "
करटक ने कहा-
“इस बात से अपने को क्या मतलब ? अपने काम के सिवा जो दूसरे के काम में अपना सर खपाता है वह खीला खींचने- वाले बन्दर की तरह मृत्यु पाता है |"
दमनक कहा, “यह कैसे ?” ...
तब करटक ने उसे "खीला खींचने वाले एक बन्दर" की कथा सुनते हुए कहा -
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बहुत समय पूर्व की बात है दक्षिण भारत के संपन्न नगर में वर्धमान नाम का एक व्यापारी निवास करता था | एक रात जब वर्धमान रात्रि में विश्राम कर रहा था तो उसने मन में विचार किया की उसे और अधिक धनोपार्जन के लिए प्रयास करना चाहिए | उसने सोचा की यदि वह अपने माल को अन्य नगरों में ले जाकर बेचे तो उसे अच्छी खासी रकम मिल सकती है |
इस प्रकार विचार करके एक दिन उसने मथुरा नगर जाकर व्यापार करने का निश्चय किया |व्यापार के लिए उपयोगी माल लेकर, गुरुजनों की आज्ञा लेकर तथा अच्छे रथ पर चढकर वह बाहरनिकला | उसने अपने घर में ही पैदा हुए माल ढोने वाले - संजीवक और नंदकनाम के शुभ लक्षण वालें दो बैलों को उसने अपने रथ में जोत दिया था |
कुछ दिनों की यात्रा के पश्चात वर्धमान का कारवाँ यमुना नदी के किनारे जा पहुंचा | उसके रथ में जुते संजीवक नाम के वैल का पैर यमुना के किनारे उतरते हुए कीचड़ में फँसकर टूट गया, और जोत टूट जाने पर वह जमीन पर बैठ गया | उसकी यह अवस्था देखकर वर्धमान को वड़ा दुख हुआ | स्नेह से द्रवित होकर वह उसके लिए तीन दिनों तक अपनी यात्रा रोके रहा |
तभी उसे दुखी देखकर उसके साथियों ने कहा, "अरे सेठ, क्यों तुम इस वैल के कारण सिंह और बाघ से भरे इस वन में अपने सारे कारवां को जोखिम में डालते हो ? कहा भी है-
“”बुद्धिमान पुरुष छोटी चीजों के लिए वडी वस्तुओं का नाश नहीं करते,
छोटी वस्तु छोड़कर वडी वस्तु का रक्षण करना ही पांडित्य है” |”
इस पर उनकी बात मानकर संजीवक के लिए कुछ रखवाले नियुक्त कर अपने बाकी साथियों के साथ वर्धमान आगे चल निकला । उधर उन रखवालो ने वन को अनेक खतरों से भरा जानकर संजीवक को वन में ही छोड़ दिया और पीछे से दूसरे दिन वर्धमान के पास जाकर उससे झूठ ही कहा, "हे स्वामी संजीवक मर गया । हमने उसका अग्नि-संसकार दिया । वर्धमान यह बात सुनकर दुखी मन से कारवाँ समेत आगे बढ़ गया|
इधर यमुना के जल से सिंचित शीतल हवा से स्वस्थ-शरीर होकर, संजीवक- अपने बाकी आयुष्य के कारण किसी तरह उठकर यमुना तट के ऊपर पहुँचा | वहाँ नरम दूब (घास) को चरता हुआ वह थोडे ही दिनों में महादेव के नंदी जैसा पुष्ट, बड़े डील वाला और बलवान हो गया | वह हर रोज अपने सींगों से बांबी खोदता, तथा गर्जना करते हुए वन में विचरने लगा । ठीक ही कहा है.-……….
“अरक्षित व्यक्ति भी भाग्य से रक्षित होने परे रक्षा पाता हैं
अंतर सुरक्षित व्यक्ति भी भाग्यहीन होने से नष्ट हो जाता है |”
“वन में छोड़ दिये जाने पर भी अनाथ व्यक्ति जीता है घर में प्रयत्न करने पर भी मनुष्य नाश पाता है |"
उस वन का राजा पिंगलक नाम का एक सिंह था | एक दिन प्यास से व्याकुल हो कर पिंगलक यमुना नदी के तट पर पानी पीने गया और उसने दूर से ही संजीवक की गर्जना सुनी | पिंगलक ने मन में विचार किया की हो ना हो इस वन में कोई उससे भी शक्तिशाली जीव आ गया है |
इस प्रकार भयभीत होकर पिंगलक प्यासा ही वापस लौट गया और वन में बरगद के वृक्ष के नीचे अपने सभी अनुयायियों, सलाहकारों और नौकरों की सभा बुलाई | उसी वन मे करटक और दमनक नाम के दो अधिकार भ्रष्ट मंत्री पुत्र गीदड निवास करते थे | उन्होंने दूर से ही पिंगलक को प्यासा लौटकर और फिर बरगद के वृक्ष के नीचे सभा बुलाते हुए देखा तो आपस में मंत्रणा करने लगे -
दमनक बोला "भद्र करटक, यह अपना स्वामी पिंगलक पानी पीने कै लिए यमुना के किनारे पर गया पर फिर वापस आकर खडा है | प्यास से व्याकुल होते हुए वह किस कारण से पीछे फिरकर व्यूह-रचना करके उदासचित्त होकर इस वट-वृक्ष के नीचे आ गया है ? "
करटक ने कहा-
“इस बात से अपने को क्या मतलब ? अपने काम के सिवा जो दूसरे के काम में अपना सर खपाता है वह खीला खींचने- वाले बन्दर की तरह मृत्यु पाता है |"
दमनक कहा, “यह कैसे ?” ...
तब करटक ने उसे "खीला खींचने वाले एक बन्दर" की कथा सुनते हुए कहा -
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