विदेशी यात्रियों से मिलने वाली प्रमुख जानकारी (भारत का इतिहास भाग – 2)
यूनानी रोमन लेखक-
यूनानी रोमन लेखक-
- टेसियस- यह इरान का राजवैद्य था | भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियां से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय हैं |
- हेरोडोटस- इसे इतिहास का पिता कहा जाता है इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरीका में पांचवी शताब्दी ईसापूर्व के भारत-फारस के संबंध का वर्णन किया है| परंतु उसका विवरण भी अनुश्रुतियो एवं अफवाहों पर आधारित है|
- मेगस्थनीज- यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था जो चंद्रगुप्त मौर्य के राज दरबार में आया था| उसने अपनी पुस्तक इंडिका में मोर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है |
- डाइमेकस- यह सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत था, जो बिंदुसार के राज दरबार में आया था इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है|
- टॉलमी- इसने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी |
- प्लिनी- इसने प्रथम शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री नामक पुस्तक लिखी जिसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थो आदि के बारे में विवरण मिलता है |
- पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रीयन सी- इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है | यह लेखक करीब 80 ईसवी में हिंद महासागर की यात्रा पर आया था | इसने उस समय के भारत के बंदरगाह तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी|
चीनी लेखक-
- फाहियान- यह गुप्त काल में भारत आया था तथा तत्कालीन गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के राज दरबार में पहुंचा था | इसने अपने विवरण में मध्य प्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है | उसने मध्य प्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है
- संयुगन- यह 518 इस्वी में भारत आया | उसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित कीं |
- ह्वेनसांग- यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था| ह्वेनसांग ने 629 इस्वी में चीन से भारत वर्ष के लिए प्रस्थान किया था और लगभग 1 वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम भारतीय राज्य कपिषा पहुंचा| भारत में 15 वर्षों तक निवास करने के उपरांत 645 ईसवी में चीन लौट गया| वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था | इसका प्रमाण वृत्तांत ‘सी-यू-की’ नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है| इसने हर्ष कालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है| इसके अनुसार सिंध का राजा शुद्र था| ह्वेनसांग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे |
- इत्सिंग- यहां सातवीं शताब्दी के अंत में भारत आया | इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है |
- अलबरुनी- यह महमूद गजनबी के साथ भारत आया था| अरबी में लिखी गई उसकी कृति किताब उल हिंद या तहकीक-ए-हिंद (भारत की खोज) आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है| यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, रीति रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्ति कला, कानून, विज्ञान आदि विषयों के आधार पर 80 अध्याय में विभाजित है| इसमें राजपूत कालीन समाज धर्म रीति-रिवाज राजनीति आदि पर सुंदर प्रकाश डाला गया है|
- इब्नबतूता- इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहला कहां जाता है चौदहवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर तथा सबसे रोचक जानकारियां देता है| 1333 इस्वी में दिल्ली पहुंचने पर उसकी विद्वता से प्रभावित होकर सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया |
- तारा नाथ- यह एक तिब्बती लेखक था| इसमें कंग्युर तथा तंग्युर नामक ग्रंथ की रचना की | इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है |
- मार्को पोलो- यह १३ वीं शताब्दी के अंत में पांड्य देश की यात्रा पर आया था| उसका विवरण पांड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है|
- 1400 ई. पू. के अभिलेख ‘बोगज-कोई’ (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य (अश्वनी कुमार) के नाम मिलते हैं|
- मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत हेलिओडोरस के बेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तंभ लेख से प्राप्त होते हैं |
- सर्वप्रथम भारत वर्ष का जिक्र हाथी गुफा अभिलेख में हैं |
- सर्वप्रथम दुर्भिक्ष की जानकारी देने वाला अभिलेख सौह गौरा अभिलेख है |
- सर्वप्रथम भारत पर होने वाला हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है |
- सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानु गुप्त) से प्राप्त होती है |
- अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है|
- कश्मीरी नवपाषाण कालीन पुरातत्व स्थल बुर्जहोम से गर्तावास (गड्ढा घर) का साक्ष्य मिला है | इन में उतरने के लिए सीढ़ियां होती थी|
- प्राचीन सिक्कों को आहत सिक्के कहां जाता है| इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है |
- सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया|
- समुद्रगुप्त की वीणा बजाते हुए मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है|
- अरिकमेदु (पुदुच्चेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं |
- हाथी गुफा अभिलेख -कलिंग राज खारवेल
- जूनागढ़ गिरनार अभिलेख -रुद्र दमन
- नासिक अभिलेख- गौतमी बालश्री
- प्रयाग स्तंभ लेख- समुद्रगुप्त
- एहोल अभिलेख- पुलकेशिन द्वितीय
- मंदसौर अभिलेख- मालवा नरेश यशोधर्मन
- ग्वालियर अभिलेख- प्रतिहार नरेश भोज
- भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख –स्कंद गुप्त
- देव पाडा अभिलेख- बंगाल शासक विजय सेन