सियार और ढोल
एक गीदड़ था, उसका नाम था गोमायु । वह भूखा-प्यासा भोजन की तलाश में घूम रहा था । घूमते-फिरते लडाई के मैंदान में जा निकला । वहाँ एक नगाड़ा पड़ा था | पेड़ की टहनियाँ हवा से हिल-हिलकर उससे टकराती तो जोर-जोर से आवाज पैदा होती थी । यह आवाज सुनकर गोमायु डर गया । उसने सोचा-ऐसी जोरदार आवाज करने वाले जानवर की नजर में नहीं पडना चाहिए । मुझे भाग चलना चाहिए । लेकिन फिर सोचा कि भय और खुशी के मौके पर उतावली से काम करना ठीक नहीं । में पता लगाता हूँ कि यह किसकी आवाज है ?
एक गीदड़ था, उसका नाम था गोमायु । वह भूखा-प्यासा भोजन की तलाश में घूम रहा था । घूमते-फिरते लडाई के मैंदान में जा निकला । वहाँ एक नगाड़ा पड़ा था | पेड़ की टहनियाँ हवा से हिल-हिलकर उससे टकराती तो जोर-जोर से आवाज पैदा होती थी । यह आवाज सुनकर गोमायु डर गया । उसने सोचा-ऐसी जोरदार आवाज करने वाले जानवर की नजर में नहीं पडना चाहिए । मुझे भाग चलना चाहिए । लेकिन फिर सोचा कि भय और खुशी के मौके पर उतावली से काम करना ठीक नहीं । में पता लगाता हूँ कि यह किसकी आवाज है ?
बस, वह हिम्मत करके आगे बढा और नगाड़े को जाँच की । उसने पास जाकर उसे बजाया । बड़ा खुश हुआ । वहुत दिनों में मुझे इतना भोजन मिला है । इसके अंदर जरूर मांस और चरबी भरी है । यह सोचकर उसने किसी तरह उपर के सूखे चमड़े को चीर डाला । उसके दाँत भी टूट गए पर वह उसके अंदर घुस गया । किंतु वहाँ केवल लकडी के खोल को देखकर उसे बडी निराशा हुई |
इस प्रकार कथा सुनाकर दमनक ने पिंगलक से कहा- “इसलिए मैं कहता हूँ कि केवल आवाज से नहीं डरना चाहिए |”
पिंगलक ने कहा – “अरे भाई ! जब मेरे कुटुंब वाले सब डर गए हैं और भाग जाना चाहते हैं, तब मैं कैसे धीरज धरूँ?”
दमनक बोला, "इसमें उनका क्या दोष है ? सेवक तो स्वामी की तरह होते हैं, इसलिए मैं इस आवाज का पता लगाने जाता हूँ । जब तक मैँ न आऊँ तब तक आप धीरज से मेरी राह देखे" ।
पिंगलक ने कहा, " क्या तुझमें उसके सामने जाने की हिम्मत है ?”
दमनक बोला- हे राजन ! स्वामी की आज्ञा से अच्छे सेवक कहीं भी जा सकते हैं । वे सांप के मुँह में और समुद्र में भी घुस सकते हैं ।
पिंगलक ने कहा, "ऐसी बात है तो तू जा । तेरा कल्याण हो !”
दमनक पिंगलक को नमस्कार करके संजीवक की आवाज के पीछे-पीछे चल दिया | संजीवक के पास पहुँचकर दमनक को पता चला कि वह तो केवल एक बैल है | वह बड़ा खुश हुआ और मन में सोचने लगा-यह तो बड़ा अच्छा हुआ ।
इसके साथ यदि पिंगलक का मेल और लडाई कराई जाए तो वह मेरे वश में हो जाएगा । इस तरह सोचता हुआ वह पिंगलक के पास लौट आया |
पिंगलक ने पूछा, " क्या तू उस जीव क्रो देख आया है?
दमनक बोला – “क्या मैं आपसे झूठ बोल सकता हूँ ? देवता और राजा के सामने जो जरा सा भी झूठ बोलता है, उसका नाश हो जाता है ।“
पिंगलक ने कहा, "तूने उसे जरूर देखा होगा । बड़े लोग दीनों पर गुस्सा नहीं करते, इसलिए उसने तुझे मारा नहीं । तेज आँधी भी कोमल और नीचे झुके हुए तिनकों को कभी नहीं उखाड़ती ।
दमनक बोला – “जैसा आप समझें । वह बड़ा है और हम छोटे । फिर भी, अगर आप कहें तो मैं उसे आपकी सेवा में ला सकता हूँ ।“
पिंगलक ने लंबी साँस भरी और हैरानी से पूछा, - “ तू ऐसा कर सकता है ?”
दमनक बोला, - “बुद्धि क्या नहीं कर सकती ? बुद्धि से जो काम बन सकता है, वह हाथी, घोडों और फौजों से भी नहीं बन सकता ।“
पिंगलक ने कहा, -"अगर ऐसी बात है तो मैं तुझे अपना मंत्री बनाता हूँ । आज से यह काम तू हीँ करेगा|
दमनक बोला- “तू ठीक कहता है । राजा के मन की बात कोई नहीं जान सकता | तू अभी यहीं खडा रह । मैं सब ठीक-ठाक करके ही तुझे वहाँ ले जाऊँगा ।“
ऐसा कहकर दमनक पिंगलक के पास आकर बोला, - "देव, वह कोई मामूली जीव नहीं है । भगवान शिव जी की सवारी का बैल है । कहता था कि शिव जी ने मुझे यमुना के किनारे घास चरने को कहा है, और यह जंगल खेलने के लिए दिया है ।“
पिंगलक डर गया । उसने कहा, - “अब समझा । यह जंगल मांस खानेवाले पशुओं से भरा है । इसमें घास चरनेवाना जानवर बिना देवता की कृपा के इस तरह नहीं घूम सकता । अच्छा, फिर तुमने क्या कहा ?”
दमनक बोला, है – “मैंने कहा कि पिंगलक इस वन के राजा हैं । वह दुर्गा की सवारी हैं, इसलिए तुम उनके प्यारे मेहमान हो । तुम उनके पास जाओं और उनसे दोस्ती करके साथ-साथ रहो । उसने मेरी बात मान ली और कहा कि ऐसा करो, जिससे महाराज मुझे कुछ न करने का वचन दे । अब हे नाथ जैसा अच्छा लगे वैसा कीजिये |“
यह सुनकर पिंगलक ने कहा, - “शाबाश । तूने मेरे दिल की खात कही । इसलिए मैं वचन देता हूँ कि मैं उसे कुछ नहीं कहूँगा । तू भी उससे मेरे लिए ऐसा ही वचन माँग और जल्दी से उसे यहाँ ले आ ।
दमनक उसे प्रणाम करके फिर संजीवक के पास चला । रास्ते में खुश होकर सोचता जाता था- “आहा ! अब तो स्वामी मुझ पर खुश होकर मेरे वश में हो गए हैं । अब मुझसे बढकर खुशकिस्मत कोई दूसरा नहीं हो सकता ।"
बाद में संजीवक के पास पहुँचकर उसने कहा, है – “हे मित्र । तेरे लिए मैंने महाराज से वचन ले लिया है कि वह तुझे कुछ नहीं कहेंगे । तू बेफिक्र होकर चल । पर पहले तुझे मेरी एक शर्त माननी होगी । राजा की कृपा पाकर तु मुझे भूल न जाना । मैं भी तेरे साथ में सलाह-मशवरा करके राज-काज चलाऊँगा । ऐसा करेंगे तो हम दोनों आंनद के साथ राज्य-लक्ष्मी भोग सकेंगे । क्योंकि कहा गया है-
“राजा के पास के उत्तम , मध्यम और अधम कर्मचारिओं का जो शेखी के मारे सम्मान नहीं करता, वह राजा का प्रिय पात्र होने पर भी दन्तिल की तरह पदच्युतं हो जाता हैं |"
संजीवक ने पूछा – “यह किस तरह ?”
तब दमनक ने उसे “दंतिल तथा गोरंभ” की कथा सुनाई-
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इस प्रकार कथा सुनाकर दमनक ने पिंगलक से कहा- “इसलिए मैं कहता हूँ कि केवल आवाज से नहीं डरना चाहिए |”
पिंगलक ने कहा – “अरे भाई ! जब मेरे कुटुंब वाले सब डर गए हैं और भाग जाना चाहते हैं, तब मैं कैसे धीरज धरूँ?”
दमनक बोला, "इसमें उनका क्या दोष है ? सेवक तो स्वामी की तरह होते हैं, इसलिए मैं इस आवाज का पता लगाने जाता हूँ । जब तक मैँ न आऊँ तब तक आप धीरज से मेरी राह देखे" ।
पिंगलक ने कहा, " क्या तुझमें उसके सामने जाने की हिम्मत है ?”
दमनक बोला- हे राजन ! स्वामी की आज्ञा से अच्छे सेवक कहीं भी जा सकते हैं । वे सांप के मुँह में और समुद्र में भी घुस सकते हैं ।
पिंगलक ने कहा, "ऐसी बात है तो तू जा । तेरा कल्याण हो !”
दमनक पिंगलक को नमस्कार करके संजीवक की आवाज के पीछे-पीछे चल दिया | संजीवक के पास पहुँचकर दमनक को पता चला कि वह तो केवल एक बैल है | वह बड़ा खुश हुआ और मन में सोचने लगा-यह तो बड़ा अच्छा हुआ ।
इसके साथ यदि पिंगलक का मेल और लडाई कराई जाए तो वह मेरे वश में हो जाएगा । इस तरह सोचता हुआ वह पिंगलक के पास लौट आया |
पिंगलक ने पूछा, " क्या तू उस जीव क्रो देख आया है?
दमनक बोला – “क्या मैं आपसे झूठ बोल सकता हूँ ? देवता और राजा के सामने जो जरा सा भी झूठ बोलता है, उसका नाश हो जाता है ।“
पिंगलक ने कहा, "तूने उसे जरूर देखा होगा । बड़े लोग दीनों पर गुस्सा नहीं करते, इसलिए उसने तुझे मारा नहीं । तेज आँधी भी कोमल और नीचे झुके हुए तिनकों को कभी नहीं उखाड़ती ।
दमनक बोला – “जैसा आप समझें । वह बड़ा है और हम छोटे । फिर भी, अगर आप कहें तो मैं उसे आपकी सेवा में ला सकता हूँ ।“
पिंगलक ने लंबी साँस भरी और हैरानी से पूछा, - “ तू ऐसा कर सकता है ?”
दमनक बोला, - “बुद्धि क्या नहीं कर सकती ? बुद्धि से जो काम बन सकता है, वह हाथी, घोडों और फौजों से भी नहीं बन सकता ।“
पिंगलक ने कहा, -"अगर ऐसी बात है तो मैं तुझे अपना मंत्री बनाता हूँ । आज से यह काम तू हीँ करेगा|
दमनक बोला- “तू ठीक कहता है । राजा के मन की बात कोई नहीं जान सकता | तू अभी यहीं खडा रह । मैं सब ठीक-ठाक करके ही तुझे वहाँ ले जाऊँगा ।“
ऐसा कहकर दमनक पिंगलक के पास आकर बोला, - "देव, वह कोई मामूली जीव नहीं है । भगवान शिव जी की सवारी का बैल है । कहता था कि शिव जी ने मुझे यमुना के किनारे घास चरने को कहा है, और यह जंगल खेलने के लिए दिया है ।“
पिंगलक डर गया । उसने कहा, - “अब समझा । यह जंगल मांस खानेवाले पशुओं से भरा है । इसमें घास चरनेवाना जानवर बिना देवता की कृपा के इस तरह नहीं घूम सकता । अच्छा, फिर तुमने क्या कहा ?”
दमनक बोला, है – “मैंने कहा कि पिंगलक इस वन के राजा हैं । वह दुर्गा की सवारी हैं, इसलिए तुम उनके प्यारे मेहमान हो । तुम उनके पास जाओं और उनसे दोस्ती करके साथ-साथ रहो । उसने मेरी बात मान ली और कहा कि ऐसा करो, जिससे महाराज मुझे कुछ न करने का वचन दे । अब हे नाथ जैसा अच्छा लगे वैसा कीजिये |“
यह सुनकर पिंगलक ने कहा, - “शाबाश । तूने मेरे दिल की खात कही । इसलिए मैं वचन देता हूँ कि मैं उसे कुछ नहीं कहूँगा । तू भी उससे मेरे लिए ऐसा ही वचन माँग और जल्दी से उसे यहाँ ले आ ।
दमनक उसे प्रणाम करके फिर संजीवक के पास चला । रास्ते में खुश होकर सोचता जाता था- “आहा ! अब तो स्वामी मुझ पर खुश होकर मेरे वश में हो गए हैं । अब मुझसे बढकर खुशकिस्मत कोई दूसरा नहीं हो सकता ।"
बाद में संजीवक के पास पहुँचकर उसने कहा, है – “हे मित्र । तेरे लिए मैंने महाराज से वचन ले लिया है कि वह तुझे कुछ नहीं कहेंगे । तू बेफिक्र होकर चल । पर पहले तुझे मेरी एक शर्त माननी होगी । राजा की कृपा पाकर तु मुझे भूल न जाना । मैं भी तेरे साथ में सलाह-मशवरा करके राज-काज चलाऊँगा । ऐसा करेंगे तो हम दोनों आंनद के साथ राज्य-लक्ष्मी भोग सकेंगे । क्योंकि कहा गया है-
“राजा के पास के उत्तम , मध्यम और अधम कर्मचारिओं का जो शेखी के मारे सम्मान नहीं करता, वह राजा का प्रिय पात्र होने पर भी दन्तिल की तरह पदच्युतं हो जाता हैं |"
संजीवक ने पूछा – “यह किस तरह ?”
तब दमनक ने उसे “दंतिल तथा गोरंभ” की कथा सुनाई-
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