पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियाँ (Complete Version)
दक्षिण जनपद में महिलारोप्यम नाम का नगर है । वहाँ निर्धनों के लिए कल्पवृक्ष-समान, उत्तम राजाओं की मुकुट-मणियों की प्रभा से भासित, सकल कलाओं में पारंगत अमरशक्ति नामक राजा थे । उनके बहु-शक्ति , उग्रशक्ति और अनंतशक्ति नाम के तीन परम मूर्ख पुत्र हुए । उन्हें पढ़ने से विमुख देख राजा अत्यंत दुखी थे | एक दिवस राजा ने अपने सभी मंत्रियों को राज-दरबार में बुलाकर कहा, "देखिए आपको पता है कि मेरे पुत्र ‘शास्त्र-विमुख' और बुद्धिरहिंत हैं । इन्हें देखते हुए बड़ा राज्य भी मुझे सुख नहीं देता” । अथवा ठीक ही कहा है-
“अजात, मृत और मूर्ख पुत्रों में मृत और अजात पुत्र अच्छे हैं
क्योंकि पहले- दो तो थोडा ही दुख देते हैं पर मूर्ख पुत्र तो जीवन-पर्यन्त जलाता रहता है”
इसलिए इनकी जैसे बुद्धि खुलें ऐसा कोई उपाय आप कीजिए | यहां परं मुझसे वृत्ति (वेतन) भोगने वालें पाँच सौ पंडितों की मंडली बैठी हें , इसलिए जिससे मेरी मनोकामनाएँ सिद्ध हों, वैसा कीजिए"|
राजा के इस प्रकार वचनों को सुनकर एक पंडित बोलें ,"महाराज ! व्याकरण का अध्ययन वारह वर्ष तक चलता है । इसके बाद मनु के धर्मशास्त्र, चाणक्य के अर्थशास्त्र और वात्स्यायन के काम-शास्त्र का अध्ययन होता है । इस तरह घर्म, अर्थ और काम-शास्त्र का ज्ञान होता हैं | इस तरह बुद्धि जागती है | "
इतने में उनकें बीच से सुमति नाम का एक मंत्री बोला, "यह जीवन नाशवान् हैं, शब्द शास्त्र वहुत दिनों में सीखे जाते हैं इसलिए राजकुमारों की शिक्षा के लिए किसी छोटे शास्त्र का विचार करना चाहिए | सुमति ने आगे कहा - हे राजन ! मैं विष्णु शर्मा नाम के एक प्रकांड विद्वान ब्राह्मण को जानता हूँ, जिनकी विद्वता के चर्चे दूर देशों तक विख्यात हैं | मेरे विचार से वह इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं अतः आप निःसंकोच तीनों राजकुमारों को उनकी शरण में विद्या अर्जन हेतु भेज दीजिए|
राजा अमरशक्ति ने तुरंत ही पंडित विष्णु शर्मा को राज दरबार में सम्मान सहित बुलाकर अपनी व्यथा सुनाते हुए याचना की “हे ब्राह्मण, कृपया मुझ पर कृपा करते हुए मेरे तीनों मूर्ख पुत्रों को अपनी शरण में लीजिए और उन्हें सर्वथा योग्य व बुद्धिमान बना दीजिए, बदले में मैं आपको सौ गांव एवं अपार धन सम्पदा पुरस्कार स्वरुप प्रदान करूँगा” |
पंडित विष्णु शर्मा ने उत्तर दिया, “हे राजन ! मुझे धन सम्पदा का लोभ नहीं है | मैं प्रतिज्ञा करता हूँ की केवल छः माह की अवधि के भीतर आपके तीनो पुत्रों को योग्य एवं सुशिक्षित बना कर आपके सम्मुख प्रस्तुत करूँगा अन्यथा अपने नाम का त्याग कर दूँगा” |
ऐसा सुनते ही राजा अमरशक्ति अत्यंत प्रसन्न हुए एवं तुरंत अपने तीनो पुत्रों को बुलाकर पंडित विष्णु शर्मा के हाथ में सौंप दिया | पंडित विष्णु शर्मा तीनों युवराजों को लेकर अपने आश्रम आ गए जहाँ पर उन्होंने युवराजों की शिक्षा-दीक्षा आरम्भ कर दी | पंडित विष्णु शर्मा ने अपने उपदेशों को पांच भागों में बांटा जो कालांतर में पंचतंत्र नामक महान ग्रन्थ के रूप में प्रसिद्द हुआ | पंचतंत्र की सम्पूर्ण कथाएँ इन्ही पांच भागों (तंत्रों) में निहित हैं -
“अजात, मृत और मूर्ख पुत्रों में मृत और अजात पुत्र अच्छे हैं
क्योंकि पहले- दो तो थोडा ही दुख देते हैं पर मूर्ख पुत्र तो जीवन-पर्यन्त जलाता रहता है”
इसलिए इनकी जैसे बुद्धि खुलें ऐसा कोई उपाय आप कीजिए | यहां परं मुझसे वृत्ति (वेतन) भोगने वालें पाँच सौ पंडितों की मंडली बैठी हें , इसलिए जिससे मेरी मनोकामनाएँ सिद्ध हों, वैसा कीजिए"|
राजा के इस प्रकार वचनों को सुनकर एक पंडित बोलें ,"महाराज ! व्याकरण का अध्ययन वारह वर्ष तक चलता है । इसके बाद मनु के धर्मशास्त्र, चाणक्य के अर्थशास्त्र और वात्स्यायन के काम-शास्त्र का अध्ययन होता है । इस तरह घर्म, अर्थ और काम-शास्त्र का ज्ञान होता हैं | इस तरह बुद्धि जागती है | "
इतने में उनकें बीच से सुमति नाम का एक मंत्री बोला, "यह जीवन नाशवान् हैं, शब्द शास्त्र वहुत दिनों में सीखे जाते हैं इसलिए राजकुमारों की शिक्षा के लिए किसी छोटे शास्त्र का विचार करना चाहिए | सुमति ने आगे कहा - हे राजन ! मैं विष्णु शर्मा नाम के एक प्रकांड विद्वान ब्राह्मण को जानता हूँ, जिनकी विद्वता के चर्चे दूर देशों तक विख्यात हैं | मेरे विचार से वह इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं अतः आप निःसंकोच तीनों राजकुमारों को उनकी शरण में विद्या अर्जन हेतु भेज दीजिए|
राजा अमरशक्ति ने तुरंत ही पंडित विष्णु शर्मा को राज दरबार में सम्मान सहित बुलाकर अपनी व्यथा सुनाते हुए याचना की “हे ब्राह्मण, कृपया मुझ पर कृपा करते हुए मेरे तीनों मूर्ख पुत्रों को अपनी शरण में लीजिए और उन्हें सर्वथा योग्य व बुद्धिमान बना दीजिए, बदले में मैं आपको सौ गांव एवं अपार धन सम्पदा पुरस्कार स्वरुप प्रदान करूँगा” |
पंडित विष्णु शर्मा ने उत्तर दिया, “हे राजन ! मुझे धन सम्पदा का लोभ नहीं है | मैं प्रतिज्ञा करता हूँ की केवल छः माह की अवधि के भीतर आपके तीनो पुत्रों को योग्य एवं सुशिक्षित बना कर आपके सम्मुख प्रस्तुत करूँगा अन्यथा अपने नाम का त्याग कर दूँगा” |
ऐसा सुनते ही राजा अमरशक्ति अत्यंत प्रसन्न हुए एवं तुरंत अपने तीनो पुत्रों को बुलाकर पंडित विष्णु शर्मा के हाथ में सौंप दिया | पंडित विष्णु शर्मा तीनों युवराजों को लेकर अपने आश्रम आ गए जहाँ पर उन्होंने युवराजों की शिक्षा-दीक्षा आरम्भ कर दी | पंडित विष्णु शर्मा ने अपने उपदेशों को पांच भागों में बांटा जो कालांतर में पंचतंत्र नामक महान ग्रन्थ के रूप में प्रसिद्द हुआ | पंचतंत्र की सम्पूर्ण कथाएँ इन्ही पांच भागों (तंत्रों) में निहित हैं -
- मित्रभेद - मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव
- मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति - मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ
- काकोलुकीयम् - कौवे एवं उल्लुओं की कथा
- लब्धप्रणाश - हाथ लगी चीज (लब्ध) का हाथ से निकल जाना (हानि)
- अपरीक्षित कारक - कार्य करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी न करें
पहला तंत्र-मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
प्रारंभ की कथा-मित्रभेद : पंचतंत्र
बन्दर और लकड़ी का खूंटा : पंचतंत्र
सियार और ढोल : पंचतंत्र
व्यापारी का पतन और उदय : पंचतंत्र
मूर्ख साधू और ठग : पंचतंत्र
लड़ते बकरे और सियार : पंचतंत्र
नकटी दूतिका की कथा : पंचतंत्र
दुष्ट सर्प और कौवे : पंचतंत्र
बगुला भगत और केकड़ा : पंचतंत्र
चतुर खरगोश और शेर : पंचतंत्र
खटमल और बेचारी जूं : पंचतंत्र
रंगा सियार : पंचतंत्र
शेर ऊंट सियार और कौवा : पंचतंत्र
टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान : पंचतंत्र
मूर्ख बातूनी कछुआ : पंचतंत्र
तीन मछलियां : पंचतंत्र
हाथी और गौरैया : पंचतंत्र
सिंह और सियार : पंचतंत्र
चिड़िया और बन्दर : पंचतंत्र
गौरैया और बन्दर : पंचतंत्र
मित्र-द्रोह का फल : पंचतंत्र
मूर्ख बगुला और नेवला : पंचतंत्र
जैसे को तैसा : पंचतंत्र
मूर्ख मित्र : पंचतंत्र
दूसरा तंत्र-मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
साधु और चूहा : पंचतंत्र
गजराज और मूषकराज : पंचतंत्र
ब्राह्मणी और तिल के बीज : पंचतंत्र
व्यापारी के पुत्र की कहानी : पंचतंत्र
अभागा-बुनकर : पंचतंत्र
तीसरा तंत्र-काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
कौवे और उल्लू का बैर : पंचतंत्र
हाथी और चतुर खरगोश : पंचतंत्र
बिल्ली का न्याय : पंचतंत्र
बकरा ब्राह्मण और तीन ठग : पंचतंत्र
कबूतर का जोड़ा और शिकारी : पंचतंत्र
ब्राह्मण और सर्प : पंचतंत्र
बूढ़ा आदमी युवा पत्नी और चोर : पंचतंत्र
ब्राह्मण चोर और दानव : पंचतंत्र
घर का भेद : पंचतंत्र
चुहिया का स्वयंवर : पंचतंत्र
मूर्खमंडली : पंचतंत्र
बोलने वाली गुफा : पंचतंत्र
वंश की रक्षा : पंचतंत्र
कौवे और उल्लू का युद्ध : पंचतंत्र
चौथा तंत्र-लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना)
बंदर और मगरमच्छ : पंचतंत्र
मेंढकराज और नाग : पंचतंत्र
शेर, गीदड़ और मूर्ख गधा : पंचतंत्र
कुम्हार की कहानी : पंचतंत्र
गीदड़ गीदड़ है और शेर शेर : पंचतंत्र
शेर की खाल में गधा : पंचतंत्र
घमंड का सिर नीचा : पंचतंत्र
सियार की रणनीति : पंचतंत्र
कुत्ते का वैरी कुत्ता : पंचतंत्र
स्त्री का विश्वास : पंचतंत्र
स्त्री-भक्त राजा : पंचतंत्र
पाँचवाँ तंत्र-अपरीक्षितकारकम् (बिना परखे काम न करें)
प्रारंभ की कथा-अपरीक्षितकारकम् : पंचतंत्र
ब्राह्मणी और नेवला : पंचतंत्र
मस्तक पर चक्र : पंचतंत्र
जब शेर जी उठा : पंचतंत्र
चार मूर्ख पंडित : पंचतंत्र
दो मछ़लियाँ और एक मेंढक : पंचतंत्र
संगीतमय गधा : पंचतंत्र
दो सिर वाला जुलाहा : पंचतंत्र
ब्राह्मण का सपना : पंचतंत्र
वानरराज का बदला : पंचतंत्र
राक्षस का भय : पंचतंत्र
अंधा, कुबड़ा और त्रिस्तनी : पंचतंत्र
दो सिर वाला पक्षी : पंचतंत्र
ब्राह्मण-कर्कटक कथा : पंचतंत्र
प्रारंभ की कथा-मित्रभेद : पंचतंत्र
बन्दर और लकड़ी का खूंटा : पंचतंत्र
सियार और ढोल : पंचतंत्र
व्यापारी का पतन और उदय : पंचतंत्र
मूर्ख साधू और ठग : पंचतंत्र
लड़ते बकरे और सियार : पंचतंत्र
नकटी दूतिका की कथा : पंचतंत्र
दुष्ट सर्प और कौवे : पंचतंत्र
बगुला भगत और केकड़ा : पंचतंत्र
चतुर खरगोश और शेर : पंचतंत्र
खटमल और बेचारी जूं : पंचतंत्र
रंगा सियार : पंचतंत्र
शेर ऊंट सियार और कौवा : पंचतंत्र
टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान : पंचतंत्र
मूर्ख बातूनी कछुआ : पंचतंत्र
तीन मछलियां : पंचतंत्र
हाथी और गौरैया : पंचतंत्र
सिंह और सियार : पंचतंत्र
चिड़िया और बन्दर : पंचतंत्र
गौरैया और बन्दर : पंचतंत्र
मित्र-द्रोह का फल : पंचतंत्र
मूर्ख बगुला और नेवला : पंचतंत्र
जैसे को तैसा : पंचतंत्र
मूर्ख मित्र : पंचतंत्र
दूसरा तंत्र-मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
साधु और चूहा : पंचतंत्र
गजराज और मूषकराज : पंचतंत्र
ब्राह्मणी और तिल के बीज : पंचतंत्र
व्यापारी के पुत्र की कहानी : पंचतंत्र
अभागा-बुनकर : पंचतंत्र
तीसरा तंत्र-काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
कौवे और उल्लू का बैर : पंचतंत्र
हाथी और चतुर खरगोश : पंचतंत्र
बिल्ली का न्याय : पंचतंत्र
बकरा ब्राह्मण और तीन ठग : पंचतंत्र
कबूतर का जोड़ा और शिकारी : पंचतंत्र
ब्राह्मण और सर्प : पंचतंत्र
बूढ़ा आदमी युवा पत्नी और चोर : पंचतंत्र
ब्राह्मण चोर और दानव : पंचतंत्र
घर का भेद : पंचतंत्र
चुहिया का स्वयंवर : पंचतंत्र
मूर्खमंडली : पंचतंत्र
बोलने वाली गुफा : पंचतंत्र
वंश की रक्षा : पंचतंत्र
कौवे और उल्लू का युद्ध : पंचतंत्र
चौथा तंत्र-लब्धप्रणाश (हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना)
बंदर और मगरमच्छ : पंचतंत्र
मेंढकराज और नाग : पंचतंत्र
शेर, गीदड़ और मूर्ख गधा : पंचतंत्र
कुम्हार की कहानी : पंचतंत्र
गीदड़ गीदड़ है और शेर शेर : पंचतंत्र
शेर की खाल में गधा : पंचतंत्र
घमंड का सिर नीचा : पंचतंत्र
सियार की रणनीति : पंचतंत्र
कुत्ते का वैरी कुत्ता : पंचतंत्र
स्त्री का विश्वास : पंचतंत्र
स्त्री-भक्त राजा : पंचतंत्र
पाँचवाँ तंत्र-अपरीक्षितकारकम् (बिना परखे काम न करें)
प्रारंभ की कथा-अपरीक्षितकारकम् : पंचतंत्र
ब्राह्मणी और नेवला : पंचतंत्र
मस्तक पर चक्र : पंचतंत्र
जब शेर जी उठा : पंचतंत्र
चार मूर्ख पंडित : पंचतंत्र
दो मछ़लियाँ और एक मेंढक : पंचतंत्र
संगीतमय गधा : पंचतंत्र
दो सिर वाला जुलाहा : पंचतंत्र
ब्राह्मण का सपना : पंचतंत्र
वानरराज का बदला : पंचतंत्र
राक्षस का भय : पंचतंत्र
अंधा, कुबड़ा और त्रिस्तनी : पंचतंत्र
दो सिर वाला पक्षी : पंचतंत्र
ब्राह्मण-कर्कटक कथा : पंचतंत्र
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